Urad Cultivation : गेहूं के बाद खाली पड़ी जमीन पर करें इस फसल की खेती, लागत कम और होगा तगड़ा मुनाफा

Urad Cultivation : डॉ. मधुसूदन कुंडू, कृषि विज्ञान केंद्र भगवानपुर हाट सीवान के कर्मचारी, ने कहा कि चना, गेहूं, सरसों और मसूर की फसलों के कटाई होने के बाद किसान भाइयों के खेत लगातार खाली हो रहे हैं। इसके पश्चात अगली फसल धान की आने वाली है। धान की फसल में तकरीबन 80 से 90 दोनों का वक्त लगेगा। ऐसे में सभी किसान भाई उड़द की खेती करके अपनी अच्छी आमदनी कमा सकते हैं। सबसे बढ़िया बात यह है की उड़द की खेती में खर्च भी कम लगता है। उड़द की खेती भी मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाती है। राइजोबियम, जो उड़द की जड़ों में पाया जाता है, मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है। 85 से 90 दिन में उड़द पककर तैयार हो जाती है।Urad Cultivation

Urad Cultivation

Urad Cultivation : उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और हरियाणा के सिंचित क्षेत्रों में उड़द की खेती की जाती है। यह एक छोटी फसल है, 60 से 65 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। उड़द को वार्षिक आय का फसल भी कहा जाता है। जायद का मौसम इसकी खेती के लिए सबसे अच्छा है। इसके दाने में लगभग 60% कार्बोहाइड्रेट, 24% प्रोटीन और 1% वसा होते हैं। उड़द मुख्यतः दाल में मिलती है। दलहनीय फसल होने के कारण उड़द वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को स्थिर करके जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाती है। इसके अलावा, उड़द की फली काटने के बाद मृदा में फसलों की पत्तियों और जडों के अवशेषों की वजह से भूमि में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है। उड़द की फसल को हरी खाद के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

उड़द के लिए जलवायु और तापक्रम

उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों में उड़द की खेती की जाती है, क्योंकि यह फसल उच्च तापक्रम को सहन करने में पूरी तरह से सक्षम है। खेती के लिए सबसे अच्छा तापमान 25-35 डिग्री सेल्सियस है। यद्यपि, उड़द बड़ी आसानी से 43 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहन कर सकती है।Urad Cultivation

उड़द के लिए मृदा का चयन और तैयारी

उड़द के खेती के लिए सर्वोत्तम भूमि हल्की रेतीली दोमट या मध्यम प्रकार की है, जिसका पीएच 7-8 है और पर्याप्त जल निकास है। उड़द के खेत की तैयारी: भारी मिट्टी होने पर दो से तीन बार जुताई करना आवश्यक है. जुताई के बाद खेत को समतल बनाने के लिए पाटा चलाना बेहतर होता है, जिससे मिट्टी में नमी बनी रहती है।Urad Cultivation

उड़द की विकसित प्रजातियां

मुख्यतः दो प्रकार की उड़द पायी जाती है: शेखर-3, आजाद उड़द-3, पन्त उड़द-31, WV-108, PW-30। IP-94 और PD-1 मुख्य रूप से हैं, और जायद हेतु PAN-19 और PAN-35, टाईप-9, नरेन्द्र उड़द-1, आजाद उड़द-1, उत्तर, आजाद उड़द-2 और शेखर-2 प्रजातियाँ हैं। टाईप-9, नरेन्द्र उड़द-1, आजाद उड़द-2, शेखर उड़द-2 जैसे कुछ प्रजातियाँ खरीफ और जायद दोनों ऋतुओं में पैदा होते हैं।Urad Cultivation

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बीजोपट्टी

बुवाई से पूर्व बीज की अंकुरण क्षमता की जांच करनी चाहिए; यदि बीज उपचारित नहीं है तो उसे 3 ग्राम प्रति किलोग्राम फफूंदी नाशक दवा थीरम से उपचारित करना चाहिए।Urad Cultivation

बीज दरें और बुवाई

ग्रीष्म ऋतु में बीज दर 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जबकि खरीफ ऋतु में 12 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। उड़द की बुवाई जायद और खरीफ फसल में अलग-अलग समय पर की जाती है.

उड़द की फसल में उर्वरकों की मात्रा और उनका उपयोग कैसे किया जाए

उड़द एक दलहनी फसल होने के कारण उसे अधिक नत्रजन की जरूरत नहीं होती क्योंकि उड़द की जड़ में उपस्थित राईजोबियम जीवाणु स्वतंत्र नत्रजन को ग्रहण करते हैं और पौधों को प्रदान करते हैं। बुवाई के समय, जीवाणु 15-20 किग्रा नत्रजन, 40-50 किग्रा फास्फोरस और 40 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से मृदा में मिला देते हैं जब तक कि जड़ों में नत्रजन इकट्ठा करने वाले जीवाणु क्रियाशील हो जाते हैं।Urad Cultivation

उड़द की खेती में सिंचाई व्यवस्था

खरीफ ऋतु की फसल में वर्षा कम होने पर फलियों के बनते समय एक बार सिंचाई करनी चाहिए. जायद की फसल में पहली सिंचाई बुवाई के 30-35 दिन बाद करनी चाहिए, फिर 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए मृदा नमी की आवश्यकतानुसार।Urad Cultivation

उड़द फसल में खरपतवार नियंत्रण

उपज का 40 से 50 प्रतिशत नुकसान हो सकता है। रसायनिक रूप से खरपतवार नियंत्रण करने के लिए, फसल की बुवाई के बाद और बीजों के अंकुरण से पहले 1.25 किग्रा पेन्डिमिथालीन को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव किया जा सकता है। अगर खरपतवार फसल में उगते हैं तो पहली निराई-गुड़ाई खुरपी की मदद से बुवाई के 15 से 20 दिनों के बाद करनी चाहिए, फिर 15 दिनों के बाद फिर से उगने पर निराई करनी चाहिए।

उड़द की फसल के प्रमुख रोग और उनका नियंत्रण

उड़द की फसल में अक्सर पीला रंग या मोजैक रोग दिखाई देता है। इसमें रोग का विषाणु सफेद मक्खी से फैलता है, इसलिए इसकी रोकथाम के लिए जल्दी से दूसरी मोजैक-रोधी प्रजातियों की बुवाई करनी चाहिए। साथ ही, मोजैक से प्रभावित पौधों को फसल में दिखते ही सावधानीपूर्वक उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए और रसायनों का छिड़काव करना चाहिए, जैसे कि डाईमिथोएट 30 EC प्रति हेक्टर या मिथाईल-ओ-डिमेटान 25 EC प्रति हेक्टर।Urad Cultivation

पीला मोजेक वायरस

यह वायरस से फैलता है और उड़द में आम है। सफेद मक्खी इसका वाहक है। 4-5 सप्ताह बाद ही इसका असर दिखाई देता है। इस बीमारी के पहले लक्षण गोलाकार पीले धब्बे होते हैं। पूरी पत्तियां कुछ दिनों में पीली हो जाती हैं। ये पत्तियां अंत में सफेद सी होकर सूख जाती हैं।Urad Cultivation

नियंत्रित

सफेद मक्खी की रोकथाम से बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है। उड़द की पीली मोजैक रोग प्रतिरोधी किस्मों (पंत यू-19, पंत यू-30, यूजी.218, TP-4, पंत यू-30, बरखा और KAU-96-3) की बुवाई करें।Urad Cultivation

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