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Wheat Export: निर्यात को लेकर सरकार ने साफ की स्थिति, अब सिर्फ इन देशों को गेहूं देगा भारत

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नई दिल्ली - भारत ने गेहूं निर्यात की रोक से नाराज होने वाले देशों की परवाह ना करते हुए अब अपनी स्थिति बिल्कुल स्पष्ट कर दी है। देश में  केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री पीयूष गोयल ने स्विट्जरलैंड के दावोस में आयोजित वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के सम्मेलन ममें संबोधन मे बताया कि , “भारत अब उन देशों के लिए ही गेहूं निर्यात (Wheat Export) की अनुमति देना जारी रखेगा, जिन्हें इसकी काफी जरूरत है, जो मित्रवत हैं और जिनके पास लेटर ऑफ क्रेडिट भी उपलब्ध है.” जानकारी के लिए बता दे कि घरेलू बाजार में गेहूं महंगा होने की वजह से बढ़ती महंगाई और कम उत्पादन के अनुमानों को देखते हुए केंद्र सरकार ने 13 मई को इसके एक्सपोर्ट पर पूरी तरह रोक लगा दी थी.  

गोयल ने इस बात को भी रेखांकित किया कि इस वर्ष सरकार गेहूं के उत्पादन (Wheat Production) में 7 से 8 फीसदी की बढ़ोतरी की उम्मीद थी, लेकिन लू और मौसमी बदलाव के कारण फसल की कटाई जल्दी हुई और इसके कारण गुन्नवता और उत्पादन में भी कमी आ गई. उन्होंने आगे कहा, “इस स्थिति को देखते हुए हम जितना उत्पादन कर पा रहे हैं, वह फिलहाल घरेलू खपत के लिए ही पर्याप्त है.”

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विश्व में गेहूं का पारंपरिक निर्यातक नहीं है भारत

केंद्रीय मंत्री गोयल ने आगे कहा कि भारत गेहूं के अंतरराष्ट्रीय बाजार में कभी भी पारंपरिक आपूर्तिकर्ता नहीं था और लगभग 2 साल पहले ही गेहूं का निर्यात देश द्वारा शुरू किया था. पिछले साल 7 लाख मीट्रिक टन गेहूं का निर्यात भी किया गया था और इसमें से अधिकांश पिछले दो महीनों के भीतर किया गया, जब रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध आरंभ हुआ था. भारत का गेहूं निर्यात इसके विश्व व्यापार के 1 फीसदी से कम ही है और हमारे निर्यात पर रोक से वैश्विक बाजारों को प्रभावित भी नहीं होना चाहिए. और हमने गरीब देशों और पड़ोसियों को निर्यात की अनुमति देना भी जारी रखा है.”

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इस वर्ष कितना होगा गेहूं उत्पादन

केंद्र सरकार ने 2021-22 में कुल 110 मिलियन टन गेहूं उत्पादन का टारगेट तय किया था. लेकिन तीसरे अग्रिम अनुमानों के अनुसार 106.41 मिलियन टन उत्पादन ही प्राप्त होगा. रूस और यूक्रेन दोनों दुनिया के प्रमुख गेहूं उत्पादकों में से गिने जाते हैं, लेकिन दोनों देशों के बीच चल रही जंग की वजह से इस साल कई दूसरे देशों में गेहूं की मांग काफी ज्यादा बढ़ गई है. क्योंकि उनमें रूस और यूक्रेन से फिलहाल गेहूं एक्सपोर्ट नहीं हो पा रहा है. यही नहीं कई देशों में इसके उत्पादन में भी इस बार कमी आई है. इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गेहूं के रेट में आग ही लगी हुई है.

इस बार सरकारी खरीद घट गई, बदल गया टारगेट

गेहूं के रेट में अंतरराष्ट्रीय तेजी का असर भारत में भी साफ देखा जा रहा है. यहां भी किसानों को गेहूं के दाम 2015 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से ज्यादा ही मिल रहा है. इसलिए किसान सरकारी मंडी में गेहूं बेचने की बजाय व्यापारियों को बेचना ही पसंद कर रहे हैं. इसीलिए इस साल अब तक सरकारी  खरीद का लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है.

केंद्र सरकार ने अप्रैल की शुरुआत में ब्यान जारी कर कहा था कि इस बार एमएसपी पर सरकार द्वारा 444 लाख मिट्रिक टन गेहूं खरीदा जाएगा. लेकिन एकदम बदले हालात में उसे इस लक्ष्य को कम करके 195 लाख मिट्रिक टन ही करना पड़ा है.

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