Perplexity Search : जब अरविंद श्रीनिवास को कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में पीएचडी करने की मंजूरी मिल गई तो उनकी मां को निराशा हुई। कई भारतीय पैरेंट्स के समान वे भी चाहती थीं कि अरविंद मैसाचुसेट्स टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट में पढ़ाई करें। अंत में स्थितियां बेहतर हुई। उन्होंने ओपन एआई और गूगल डीपमाइंड में इंटर्नशिप की। इस अनुभव के साथ अरविंद ने जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस स्टार्टअप परप्लेक्सिटी की शुरुआत की।
8 हजार करोड़ रुपए से अधिक मूल्य की कंपनी (Perplexity Search)
8 हजार करोड़ रुपए से अधिक मूल्य की कंपनी सर्च सवालों के विकीपीडिया जैसे जवाब देती है। गौरतलब है कि अरविंद ने आईआईटी मद्रास से पढ़ाई की है। उन के आंसर इंजिन का लक्ष्य गूगल सर्च से प्रतिस्पर्धा करना है। अरविंद 1997 में क्लेटन क्रिस्टेनसन की मैनेजमेंट बेस्ट सेलर किताब-द इनोवेटर्स डिलेमा में दिए गए कॉन्सेप्ट को रेखांकित करते हैं। किताब में बताया गया है कि गूगल को ओपन एआई के चैटजीपीटी और यूडॉटकॉम जैसी अन्य एआई साइट्स से कैसे खतरा है। क्रिस्टेनसन बताते हैं, नई टेक्नोलॉजी के सामने बड़ी कंपनियां कैसे नाकाम होती हैं। यदि वे नई कंपनियां से होड़ करती हैं तो उनका स्वयं का स्टैंडर्ड और ब्रांड खतरे में पड़ता है। अगर नहीं करती हैं तो उनके इनोवेशन की नई लहर का शिकार होने का जोखिम रहता है। पुरानी कंपनियां अपने अच्छे कस्टमरों को खुश करने में इतनी माहिर हैं कि वे निचले स्तर पर जाने का सपना नहीं देखती हैं।
प्रोडक्ट (Perplexity Search)
इससे नई कंपनी को मौका मिलता है। वे शुरुआत में स्तरहीन प्रोडक्ट से अलग मार्केट को लक्ष्य करती हैं। फिर लगातार सुधार करके अपनी जगह बनाती हैं। इसे दो उदाहरणों से समझिए। कैसे डिजिटल फोटोग्राफी ने कोडक को खत्म कर दिया और क्यों एपल के आईफोन ने मोबाइल फोन नहीं बल्कि लैपटॉप के बाजार में सेंध लगाई है। श्रीनिवास समझाते हैं कैसे गूगल का सर्च बिजनेस फायदे की बजाय नुकसान में बदल सकता है। यूजर्स जब उसकी लिंक्स पर क्लिक करते हैं तब गूगल को कुछ नहीं खर्च करना पड़ता है। लेकिन, हर क्लिक पर एडवरटाइजर को पैसा देना पड़ता है और कंपनी को मुनाफा होता है।
एआई ने बदला बिजनेस मॉडल (Perplexity Search)
जनरेटिव एआई ने बिजनेस बदला है। अब सर्च रिजल्ट की लागत ज्यादा होगी क्योंकि एआई संबंधित सवाल, जवाब में सर्च कोरोज के मुकाबले अधिक कंप्यूटिंग का इस्तेमाल होगा। दूसरे वे जवाब उपलब्ध कराते हैं लिंक्स नहीं। इसलिए एडवरटाइजरों का कम फायदा होता है। श्रीनिवास कहते हैं यदि अल्फाबेट को परप्लेक्सिटी जैसे प्रोडक्ट के लिए सर्च बंद करना पड़ेगी तो लागत बढ़ेगी व आय कम होगी। मुनाफा कम होने से निवेशक दूसरा रास्ता पकड़ेंगे। पस्लेक्सिटी इस बिंदु पर काम कर रहा है क्योंकि उसका मुनाफा घटने का खतरा नहीं है। गूगल के पास अपार साधन हैं, उसे चुनौती देना आसान नहीं।